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ज्वार की खेती- ज्वार की खेती का समय
ज्वार की खेती

वानस्पतिक नाम -Sorghum bicolor L. (सोरघम बाइकलर)

कुल (Family)-Poaceae (पोएसी)

प्रस्तावना-

ज्वार की खेती का समय ज्वार खरीफ ऋतु में बोई जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण फसल है। निर्धन मनुष्यों का यह मुख्य भोजन है। चारे की केवल यही एक मात्र फसल है जिसकी खेती देश में बड़े पैमाने पर होती है। ज्वार का हरा चारा अत्यन्त पौष्टिक होता है और पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं।

क्षेत्रफल और उत्पादन केन्द्र-

भारत में ज्वार की खेती संसार के अन्य देशों की अपेक्षा सर्वाधिक क्षेत्रफल में होती है भारत के अतिरिक्त अफ्रीका, चीन, आस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका ज्वार उगाने वाले अन्य प्रमुख राष्ट्र हैं।

भारत में ज्वार के क्षेत्रफल की दृष्टि से कर्नाटक प्रदेश सबसे आगे है। अधिक क्षेत्रफल में ज्वार उगाने वाले अन्य राज्य महाराष्ट्र, उ० प्र०, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान हैं। भारत में ज्वार 9-9 मि० हैक्टेयर भूमि में उगाई जाती है तथा 7.5 मिलियन टन पैदावार होती है। उत्तर प्रदेश में ज्वार उत्पादन के उपयुक्त क्षेत्र

हमारे प्रदेश में झाँसी मण्डल में ज्वार की खेती सबसे अधिक क्षेत्रफल में होती है। इलाहाबाद मण्डल का दूसरा स्थान आता है। झाँसी मण्डल उत्तर प्रदेश के समस्त ज्वार उत्पादन में 36% का भागीदार है।

हमारे प्रदेश में झाँसी जिले में ज्वार की खेती सबसे अधिक क्षेत्रफल में होती है। इसके बाद हमीरपुर का नम्बर आता है। अधिक क्षेत्रफल में ज्वार उगाने वाले अन्य जिले बाँदा, कानपुर, फतेहपुर, इलाहाबाद, जालौन, फर्रुखाबाद और मथुरा हैं।

भूमि व तैयारी - 

भूमि -

भूमि दोमट बलुई चिकनी अच्छे जीवांश युक्त अच्छी जलधारण क्षमता वाली जिसका ph  मान 6 से 6.5 के बीच हो अच्छी समझी गई है  

भूमि की तैयारी -

पहली जुताई मिटटी पलट हल से और दो तीन जुताई हीरो व टिलर से पाटते (मडा ) की सहायता से समतल करके खेत को बीज बोन योग्य बना लिया जाता है  

जलवायु-

(ज्वार गर्म जलवायु की फसल है) और बुवाई के समय काफी गर्मी चाहती हैं। भूमि में बुवाई के समय पर्याप्त नमी की भी आवश्यकता होती है। लेकिन अधिक वर्षा को यह फसल सहन नहीं कर सकती । 30 से 100 सेमी. तक वर्षा वाले स्थानों में ज्वार की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। भूमि में अधिक नमी अथवा अधिक सूखा दोनों ही बातें फसल के लिए हानिकारक हैं। 27° से 32° से० तक का औसत ताप इस फसल के अनुकूल पड़ता है लेकिन ज्वार की कुछ जातियाँ 43° से० ताप तक भी अच्छी उपज देती हैं। ज्वार की खेती मैदानी भाग में सर्वोत्तम होती है। लेकिन यह समुद्र की सतह से 1000 मीटर तक ऊँचे स्थानों में भी उगाई जा सकती है।

उन्नतशील जातियाँ-

(1) देशी जातियाँ-वर्षा, टाo 22, मऊ टा० - 1, मऊ टा०-2

(2) संकर जातियाँ - एस० पी० एच० 196, 468, SPH-504 सी० एस० एच० -1, 5, 9, (3) संकुल जातियां सी० एस० वी० 1 (स्वर्ण), सी० एस० वी० 3, 5, 6, 13, 15 (4) चारे के लिये ज्वार की जातियाँ-

(अ) एक कटाई वाली जातियाँ - यू० पी० चरी-1, 2, 3 प्रोग्रोचरी, पी० सी-6, जे० एस० 73/53, रियो, विदिशा 60-1, कम्पोजिट-1

(ब) दो कटाई वाली जातियाँ — जे० एस० – 20, पूसा चरी - 1

(स) बहु कटाई वाली जाति-मीठी सूडान, एम० पी० चरी

प्रोग्रो चरी चरी की यह किस्म पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, म० प्र०, राजस्थान के लिये जारी की गई है। इसकी 120-180 दिनों में हरा चारा देने की क्षमता 600-1200 कु० प्रति हैक्टेयर है।

संकर एस०पी०एच० 196 - यह ज्वार की नवीनतम विकसित संकर किस्म है जिससे न केवल दाना अपितु अधिक चारा भी प्राप्त होता है। चारे की मात्रा करीब-करीब देशी जातियों के बराबर है तथा संकर 5 और संकर 9 से बहुत अधिक है। चारे की उपज 150 कुन्टल प्रति हैक्टर हो जाती है जो संकर 6 से दो गुनी और संकर-9 से डेढ़ गुनी है। इस संकर जाति को बोने से किसान की दोनों समस्याओं दाना एवं चारा का समाधान हो जाता है। इसका दाना आकार में बड़ा और आकर्षक है। इसकी औसत उपज 39 कु० / है० होती है।

SPH 504 - यह सूखा रोधी ज्वार की संकर किस्म है। यह पत्ती धब्बा रोधी और न गिरने वाली है। प्ररोह मक्खी से प्रभावित है। इसकी उपज 113 दिन में 30 कुo / है० हो जाती है। ज्वार की देशी किस्मों का विवरण

ज्वार की अनेक देशी किस्में प्रचलित हैं। उत्तर प्रदेश में कृषि विभाग द्वारा ज्वार की पाँच देशी किस्में संस्तुत की गई हैं-

- टाo 22—यह दो-दनिया ज्वार है जो कि 125 दिन में पक कर तैयार होती है। इसके पौधे लम्बे और स्वस्थ होते हैं जिनकी लम्बाई औसतन 280 सेमी होती है। बीज चपटे, बड़े-बड़े तथा सफेद रंग के होते हैं। उपज 20-25 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है। यह किस्म प्रदेश के मध्यवर्ती भाग के लिये संस्तुत की गई है।

- मऊ टा०-1—यह किस्म बुन्देलखण्ड से प्राप्त एक नमूने छाँट विधि द्वारा निकाली गई थी। इसके पौधे मध्यम आकार के (लगभग 2.5 मीटर लम्बे होते हैं। भुट्टे लम्बे, कोणीय (Conical), हंस की गर्दन जैसे (Goose-necked) और आकार में बड़े-बड़े होते हैं। दाने बड़े आकार के और सफेद रंग के होते हैं। इसकी फसल 145 दिन में पक कर तैयार होती है।. औसत उपजाऊ भूमि में इसकी उपज लगभग 18 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।

- मऊ टा० 2 - यह बुन्देलखण्ड से प्राप्त नमूने से छाँट विधि द्वारा निकाली गई है। यह भी देर में पकने वाली ज्वार है जिसकी फसल 135-140 दिन में पक कर तैयार होती है। 

बीज की मात्रा-

अन्न के प्रयोजन से उगाई जा रही फसल के लिये प्रति हैक्टेयर 12-15 किग्रा० बीज की आवश्यकता होती है। चारे की फसल के लिये उपर्युक्त मात्रा का दुगुना अथवा उससे भी अधिक 30-35 किग्रा. बीज डालना चाहिये जिससे कि पौधे घने उर्गे और उनके तने पतले और मुलायम रहें।

फसल को पंक्तियों में 45 सेमी. की दूरी पर बोयें। पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी० रखनी चाहिए।

बीज 3-4 सेमी० गहरा नमी के सम्पर्क में बोयें। बोने से पूर्व 2.5 ग्राम एग्रोसन जी० एन० प्रति किग्रा. बीज में मिलाकर बीज को उपचारित करना चाहिए।

बुवाई का समय-

देशी किस्मों की बुवाई हेतु जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय अधिक उपयुक्त है। संकर जातियों की बुवाई का उत्तम समय जुलाई का प्रथम पखवाड़ा है। चारे के लिये बुवाई मई-जून में की जा सकती है।

बुवाई की विधि-

साधारणतः ज्वार का बीज छिटकवाँ बोया जाता है। चारे के लिए बुवाई का यह ढंग ठीक होता है लेकिन अन्न के लिए ज्वार को हल के पीछे 45 सेमी. की दूरी पर बने कूंडों में बोना चाहिए। पंक्तियों में बोये जाने पर ज्वार की फसल में निराई-गुड़ाई के लिए उन्नत कृषि यन्त्रों का प्रयोग किया जा सकता है।

सिंचाई-

अन्न के लिए बोई गई फसल में साधारणतः सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन सितम्बर में वर्षा न होने पर फूल आने के समय खेत में सिंचाई कर देनी चाहिए। मई में हरे चारे के लिए बोई गई फसल में वर्षा प्रारम्भ होने के समय तक 1-2 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।

खरपतवार नियंत्रण-

एट्राजीन 2 किग्रा. प्रति हे. या भारी मिट्टी में 800 ग्राम प्रति एकड़ और 1.25 किग्रा. प्रति हे. या हल्की मिट्टी में 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर, बुवाई के तुरंत बाद 2 दिनों के भीतर 500 लीटर/हेक्टेयर। या 200 लीटर प्रति हेक्टेयर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

इस शाकनाशी के प्रयोग से वार्षिक घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का बहुत प्रभावी ढंग से नियंत्रण किया जाता है। यह रसायन विशेष रूप से पथरी (ट्रिगैंथिया) को भी नष्ट कर देता है।

फसल सुरक्षा-

ज्वारीय रोग-

ज्वार का भूरा फफूँद-

पहचान- रोग की प्रारंभिक अवस्था में, बालियों और तनों पर सफेद रंग की फफूँदी दिखाई देती है। आखिरकार, जो दाने बनते हैं वे बदसूरत होते हैं और कवक के आधार पर हल्के गुलाबी, भूरे या काले हो जाते हैं। रोगग्रस्त दाने हल्के या भुरभुरे हो जाते हैं, ऐसे दानों का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यह रोग अक्सर ज्वार की संकर किस्मों या जल्दी पकने वाली किस्मों में होता है।

दवा- मैंकोजेब 2.00 किग्रा/हेक्टेयर। आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।

कीट व कीट नियंत्रण-

शूट फ्लाई-

निम्नलिखित में से किसी भी रसायन का प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें। बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

कार्बोफ्यूरान 3 ग्राम 20 किग्रा. या Forate 10 प्रतिशत C.G. 20 किग्रा. या डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. 1.0 एल प्रति हेक्टेयर। अथवा क्विनालफॉस 25 प्रतिशत ई.सी. 1.50 लीटर

पहचान- यह घरेलू मक्खी से छोटी होती है, जिसके कीट सेटिंग शुरू होते ही फसल को नुकसान पहुंचाते हैं।

दवा- 1. कुनालफास 25 ईसी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर। स्प्रे।

तना छेदक कीट-

निम्नलिखित में से किसी भी रसायन का प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें। बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

कार्बोफ्यूरान 3 ग्राम 20 किग्रा. या फोरेट 10 प्रतिशत जी. 20 किग्रा. या डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. 1.0 एल प्रति हेक्टेयर। या क्विनालफॉस 25 प्रतिशत ईसी 1.50 लीटर

पहचान- इस कीट की सूंडियां अभी भी तने में छेद कर अंदर ही अंदर खा रही हैं, जिससे बीच वाली गोभी सूख रही है।

दवा- कॉर्न बोरर की तरह ही सावधानी बरतें।

ईयर हेड मिज-

निम्नलिखित में से किसी भी रसायन का प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें। बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

फोसालॉन 4 प्रतिशत डी.पी. 20 किग्रा या करबिल 10 प्रतिशत डी.पी. 20 किग्रा. अथवा फोसालोन 35 प्रतिशत ई.सी. 1.0 ली. प्रति हे.

पहचान- वयस्क मिज लाल रंग का होता है और पंखुड़ी पर अपने अंडे देता है। लाल कृमि दानों के अंदर रहकर उसका रस चूसते हैं, जिससे दाना सूख जाता है।

दवा- 1. कार्बेरिल (50% घुलनशील चूर्ण) 1.25 किग्रा प्रति हेक्टेयर।

ज्वार का माइट(मकड़ी कीट)-

पहचान- यह एक बहुत ही छोटा ऑक्टोपस होता है जो पत्तियों के नीचे जाले बनाता है और उनमें देर तक रह कर पत्तियों से रस चूसता है। प्रभावित पत्तियाँ लाल होकर सूख जाती हैं।

दवा- निम्नलिखित में से किसी एक रसायन का छिड़काव करना चाहिए। डाइमेथोएट (30 ईसी) 1 लीटर प्रति हेक्टेयर या क्लोरपाइरीफॉस 25 ईसी। 1.5-2.00 ली./हे.

दीमक-

स्टैंड में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 2.5 एल। प्रति हे. गति से प्रयोग करें

निमेटोड-

रासायनिक नियंत्रण के लिए बुवाई से एक सप्ताह पूर्व खेत में 10 किग्रा. 10 ग्राम फोर्टे फैलाएँ और मिलाएँ।

रखवाली-

मक्का के समान ज्वार की फसल में भुट्टे लगने के समय से लेकर कटाई तक रखवाली की आवश्यकता होती है।

कटाई-

अन्न के लिये बोई गई ज्वार नवम्बर के अन्त अथवा दिसम्बर के आरम्भ में काटे जाने योग्य हो जाती है । पहले ज्वार के भुट्टों को काटकर खलिहान में इकट्ठा कर दिया जाता है और तत्पश्चात् कड़बी को काटकर उनके बण्डल बाँधकर अलग रख दिया जाता है।

हरे चारे के लिये फसल की कटाई, बुवाई के लगभग दो महीने पश्चात् प्रारम्भ होती है। चारे की फसल आवश्यकतानुसार धीरे-धीरे काटी जाती है और कुट्टी काटकर पशुओं को खिला दी जाती है। चारे की ज्वार की प्रारम्भिक अवस्था में धूरिन नाम का ग्लाईकोसाइड (HCN) रहता है जो विषैला होता है। इसकी मात्रा पौधों की वृद्धि के साथ घटती है। अतः चारे की कटाई एक वर्षा हो जाने के बाद करनी चाहिये।

मंडाई (गाहना)-

ज्वार के भुट्टों को पहले खलिहान से एकत्रित करके दो-तीन दिन तक सुखाया जाता है। तत्पश्चात् बैलों की दाँय चलाकर और लॉक को हवा में उड़ाकर बीज को अलग कर दिया जाता है ।

उपज-

देशी ज्वार की किस्मों से 15-20 कुo तथा संकर किस्मों से 35-40 कु० प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त हो जाती है। संकर किस्मों की उपज क्षमता 50 कु० / है० तक है। चारे की उपज 300-400 कु० /है० हो जाती है।

ज्वार की खेती का समय

Question & Answer-

ज्वार की फसल कितने दिनों में तैयार हो जाएगी?

बुआई के 65-85 दिन बाद जब फसल चारे का रूप धारण कर ले तो उसकी कटाई कर लेनी चाहिए। कटाई का सही समय वह है जब दाने सख्त हों और नमी की मात्रा 25 प्रतिशत से कम हो।

एक बीघे में ज्वार के बीज की कीमत कितनी होती है?

ज्वार पशुओं को उनकी हरी अवस्था में दिया जाता है और सुखाकर कार्बी रूप में भी दिया जाता है। देश के कुछ भागों में ज्वार को खाद्यान्न के रूप में भी उगाया जाता है। सूडान घास के लिए 12-14 किग्रा एवं अन्य किस्मों के लिए 20 से 24 किग्रा बीज प्रति एकड़ 25 सेमी. एम

ज्वार उगाने में कितना समय लगता है?

ज्वार की कटाई: फसल बुवाई के 65 से 75 दिनों (50%, फूल आने की अवस्था) में एक बार में काटी जाने वाली किस्मों में कटाई के लिए तैयार हो जाएगी। मल्टी-कट किस्मों के लिए, पहली कटाई 45-50 दिनों के अंतराल पर की जानी चाहिए और बाद की कटाई 1 महीने के अंतराल पर की जानी चाहिए।

ज्वार किस महीने में बोया जाता है?

ज्वार, जिसका उपयोग अनाज और चारे के लिए किया जाता है, उत्तर भारत में खरीफ के मौसम में और दक्षिण भारत में रबी के मौसम में उगाया जाता है। ज्वार प्रोटीन में अमीनो एसिड लाइसिन की मात्रा 1.4 से 2.4 प्रतिशत तक पाई जाती है, जो पोषण की दृष्टि से बहुत कम है।

प्रति 1 एकड़ में कितना ज्वार होता है?

ज्वार की खेती से औसत उपज आठ से 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। ज्वार की उन्नत किस्में और वैज्ञानिक पद्धति से उन्नत खेती से प्रति एकड़ 15 से 20 क्विंटल अनाज की अच्छी पैदावार हो सकती है। अनाज की कटाई के बाद लगभग 100 से 150 क्विंटल प्रति एकड़ सूखा पौष्टिक चारा भी पैदा हो जाता है।

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