
ग्वार की खेती
वानस्पतिक वर्गीकरण (Botanical Classification)
वानस्पतिक नाम - Cyanopsis tetragonoloba or C. psoraledis
कुल (Family) फेबीएसी (Fabaceae)
गुणसूत्र संख्या-2n = 14
ग्वार की खेती कब करें
महत्त्व एवं उपयोग (Importance and Utility) -ग्वार एक लेग्यूमिनस दलहनी फसल है ग्वार की खेती कब करें ->इसकी बुआई रबी की फसल कटाई के बाद करे बुआई का उचित समय 15 मार्च से 25 मार्च होता है। ग्वार की खेती ज्यादातर शुष्क स्थानों पर की जाती है। इसकी खेती हमारे देश में ही खाद के लिए, चारे के लिए तथा सब्जियाँ बनाने के लिए की जाती है। इसकी सूखी लकड़ियों को जलाने के लिए प्रयोग किया जाता है। दक्षिणी भारत में इसे गृह वाटिका में सब्जी के लिए उगाया जाता है, शहर और कस्बों के पास के छोटे किसान इसको सब्जी के लिए उगाते हैं।
ग्वार की फसल लेग्यूमिनस होने के कारण वायुमण्डल की नाइट्रोजन को जमीन में स्थिर करती है इसलिए जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी सहायक होती है।
ग्वार के आटे को पशुओं के चारे में भी मिलाया जाता है। इसके आटे को गोंद के रूप में कपड़ा उद्योग में भी प्रयोग किया जाता है। ग्वार के गोंद को विदेशों में निर्यात किया जाता है, अतः यह विदेशी मुद्रा कमाने में भी सहायक है, इसीलिए ग्वार को भारत का सोयाबीन कहा जा सकता है। पेपर उद्योग के लिए कच्ची सामग्री इससे मिलती है।
ग्वार में पोषक तत्त्व के रूप में 18% प्रोटीन, 32% रेशा तथा 37-38% नाइट्रोजन-रहित निष्कर्षण पाया जाता है। इसके अलावा राख 12-72%, कैल्शियम 2.29%, फॉस्पं स 0.17%, मैग्नीशियम 0.63%, सोडियम 0.25% तथा पोटाश 2-14% पाया जाता है।
उत्पत्ति (Origin) वैज्ञानिक लोग भारत को हो ग्वार का उत्पत्ति-स्था मानते हैं बेबीलोव (1950) के अनुसार भी इसका उत्पत्ति केन्द्र भारत देश ही है।
वितरण एवं क्षेत्रफल -
भारतवर्ष में क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से राजस्थान अग्रणी है। भारत में सन् 1999-2000 में ग्वार दाने का क्षेत्रफल 29-33 हजार हेक्टेयर उत्पादन 3.75 हजार टन व दाने की औसत उपज 316 किमा/हे० रही है।
उत्तर प्रदेश में अलीगढ़, मथुरा, आगरा जिले क्षेत्रफल व उत्पादन के दृष्टिकोण से आगे हैं।

जलवायु (Climate)-
वार खरीफ के मौसम की फसल है, इसलिए इसकी उचित वृद्धि तथा विकास के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। हमारे देश में इसकी खेती शुष्क क्षेत्रों में की जाती है क्योंकि यह सूखे के लिए सहनशील है। इसकी खेती राजस्थान और पंजाब के शुष्क स्थानों पर जहाँ गर्मी में गर्म हवाएं चलती हैं, की जाती है। वार लम्बे दिन वाली फसल है इसके लिए चमकीले तथा गर्म दिन की आवश्यकता होती है। शरद ऋतु में बोने पर छोटे दिन होने के कारण इसकी बढ़वार कम होती है।
भूमि व भूमि की तैयारी-
मृदा (Soil)—
ग्वार की खेती कम गहरी जड़ों वाली तथा जल्दी उगने के कारण, रेतीली भूमि पर भी अच्छी प्रकार से की जा सकती है, परन्तु इसके लिए जिस भूमि का जल निकास अच्छा होता है अच्छी समझी गई है। इसकी खेती हल्की अम्लीय तथा क्षारीय भूमियों पर जिनका pH मान 7.5-8-0 तक है, की जा सकती है भारी दोमट भूमियों पर इसकी खेती अच्छी प्रकार से नहीं की जा सकती है
खेत की तैयारी —
एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो जुताइयाँ देशी हल से करके पाटा लगा देना चाहिए। जल निकास का उचित प्रबन्ध; बोने से पहले ही करना चाहिए।
उन्नत जातियाँ-
सब्जी के लिए उन्नत जातियाँ-
- दुर्गा बहार — दुर्गापुरा (जयपुर) से 1984 में संकरण द्वारा विकसित की गई है। पौधे सीधे बढ़ने (glabrous), फूल सफेद 13-14 सेमी लम्बे, फलियाँ गूदेदार (fleshy) व गुच्छों में लगती हैं। प्रत्येक गाँठ पर 3-4 फलियाँ लगती हैं। सब्जियों के लिए फलियों की तुड़ाई बुआई के 45 दिन बाद प्रारम्भ करते हैं। तीन चार बार में फलियों की तुड़ाई हो जाती है। बैक्टीरियल ब्लाइट से प्रभावित होती है। दाने की उपज 8 कु०/हे० तक मिल जाती है।
- पूसा मौसमी—जयपुरी लोकल से चयन द्वारा पूसा से निकाली गई है। वर्षा ऋतु में बुआई के है। बुआई के 65 से 120 दिन बाद तक फलियों की तुड़ाई सब्जी के लिए कर सकते हैं। ना बौने कद का व शाखाएँ कम (sparselys) निकलती हैं। फलियों की लम्बाई 9-10 सेमी चिकनी व हल्की हरी फलियाँ, चमकदार (glossy) फलियाँ कोमल व मीठी होती हैं। फलियाँ 160-165 दिन में पकती हैं।
- पूसा नववहार—पूसा मौसमी व पूसा सदाबहार के संकरण से तैयार की गई है। बसन्त व खरीप ऋतु में बुआई के अनुकूल है। तने की ऊंचाई 100 सेमी तक, अकेला तना, शाखाएँ नहीं निकलतीं, फलियों की लम्बाई 12-15 सेमी हल्की हरी, कोमल व मांसल (flashy) तथा फलियाँ गुच्छों में लगती हैं। फलियाँ बुआई के 65-100 दिन बाद तक तोड़ते हैं। बुआई के 120-125 दिन बाद फलियाँ पक जाती हैं।
- पूसा सदाबहार—–जयपुर लोकल से चयन द्वारा निकाली गई है। ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु में उपयुक्त है। ग्रीष्म ऋतु में बुआई के 45 दिन बाद व वर्षा ऋतु में बुआई के 55 दिन बाद पहली बार फलियाँ तोड़ सकते हैं। तने पर शाखाएँ नहीं होतीं, फलियों की लम्बाई 10-12 सेमी फलियाँ हरी, कोमल व बिना रोई की होती हैं। फलियाँ 120-125 दिन में पक जाती हैं।
-

दाने के लिए ग्वार की उन्नत जातियाँ-
- सोना- चयन द्वारा विकसित, रोएदार, 15-17 शाखा / पौधा, दाने की उपज 15-17 कु० / हे० ; परीक्षण भार- 31 ग्राम, गोन्द 20-30% तक, फली की लम्बाई 5-5 सेमी, 8-10 बीज फली; फसल अवधि 156 दिन, बुआई प्रथम सप्ताह जौलाई एवं कटाई अन्तिम सप्ताह दिसम्बर।
- सुविधा - पूसा बहार से चयन द्वारा विकसित की गई है। उपज 20 कु० / हे० 10-12 शाखाएँ / पौधा, फली 5.4 सेमी लम्बी, 8-10 बीज / फली, बीज का रंग गहरा ग्रे, दाने में 25-27% गोन्द की मात्रा, परीक्षण भार 33 ग्राम, फसल अवधि 120 दिन राजस्थान में अगेती बुआई करने पर फसल 90 दिन में अक्टूबर तक कट जाती है।
चारे के लिए जातियाँ -
Pb. Guar 2, FS-22, HFG-277; 119; दुर्गापुरा सफेद, IGFRI-S-212 व IGFRI-2392-2 (चारा व दाना के उपयुक्त) T. 3; बुन्देल ग्वार- 1 ग्वार की उन्नत जातियाँ उoप्रo, हरियाणा, पंजाब; राजस्थान, बिहार एवं मध्य प्रदेश के उपयुक्त हैं।
Best ग्वार बीज -> Check Price
बीज दर -
सिंचित फसल में 30-40 किग्रा और असिंचित क्षेत्रों में 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज दर रखी जाती है। दाने के लिए बीज दर 15-20 किया/हे० रखते हैं।
बोने का समय-
शुष्क क्षेत्रों में वर्षा ऋतु का प्रारम्भिक काल इसकी बुवाई का उत्तम समय है। शिचित क्षेत्रों में इसकी बुआई मध्य मार्च से मध्य अगस्त तक की जा सकती है।
अन्तरण - 60 x 12-15 सेमी।
बोने की विधि - बीज 40-50 सेमी की दूरी पर बनी पंक्तियों में सीडड्रिल से या हल के पीछे कूंडों में बोना चाहिए। पौधों के बीच अन्तरण 8-10 सेमी रखते हैं।
खाद तथा उर्वरक -
इसमें साधारणतया खाद डालने की आवश्यकता नहीं होती है। जिस भूमि में फॉस्फोरस की कमी हो उसमें 40 किग्रा फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए। खाद बुआई से पूर्व कूड में डालना चाहिए। 25-30 किग्रा / हे० नाइट्रोजन बुआई के समय प्रयोग करते हैं।
सिंचाई और जल निकास-
जल्दी (ग्रीष्म ऋतु) में बोई जाने वाली फसल में सिंचाई आवश्यक है। प्रथम सिंचाई बोने से पूर्व की जाती है। बोने के बाद सिंचाई 10-15 दिन के अन्तर पर की जाती है। यदि वर्षा हो तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं अच्छी उपज लेने के लिए अच्छे जल निकास का होना अति आवश्यक है।
निराई-गुड़ाई फसल को प्रारम्भिक अवस्था में निराई की आवश्यकता पड़ती है।
तुड़ाई –
फलियाँ कोमल अवस्था में ग्वार की किस्म के अनुसार बुआई के 45-65 दिन बाद तोड़ने लायक हो जाती हैं। एक सप्ताह के अन्तर से रेशे रहित कोमल फलियों की तुड़ाई सब्जियों के लिए करते रहते हैं।
ग्वार के पौधे में HCN होता है जो पशुओं को विषैला होता है अतः चारे के लिए कटाई फूल आने पर, फली बनने तक कर लेनी चाहिए।
श्रेष्ठ बीज उत्पादन — बीज प्राप्त करने के लिए, फसल को रोगरहित व कीट-पतंगों से मुक्त रखना आवश्यक है। खेत से दो बार रोगिंग होना आवश्यक है, अर्थात् जाति विशेष से अन्य जातियों के पौधों को काटकर निकाल देना चाहिए। साधारणतया किस्म के अनुसार 120-160 दिन में फलियाँ पक जाती हैं। पकने पर फसल काटकर सुखाकर मँडाई कर लेते हैं। दानों को सुखाते हैं और जब उनमें 10-12% तक नमी रह जाए तो सुरक्षित भण्डारों में उनका संग्रह कर लेते हैं।
चारे के लिए -
फसल 70-80 दिन में तैयार हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु में बोई गई फसल देर से तैयार होती है।
उपज -
सिंचित क्षेत्रों में हरा चारा 250-300 कु० / हेक्टेयर, असिंचित क्षेत्रों में हरा चारा 120-150 कुo / हेक्टेयर, हरी फलियाँ 50-60 कु० / हे०, दाना 5-6 कु० / हे० ।
फसल चक्र –
जौं-मटर, गेहूँ तथा चने के बाद बोते हैं। मुख्य फसल-चक्र इस प्रकार हैं— ज्वार + ग्वार— गेहूँ, बाजरा + ग्वार-बरसीम — मक्का, ज्वार + ग्वार—बरसीम — ग्वार ।
ग्वार की खेती कब करें pdf file
अन्य फैसले-
तम्बाकू की वैज्ञानिक खेती- tobacco farming
मूंगफली की खेती pdf | मूंगफली की वैज्ञानिक खेती
कपास की खेती pdf | कपास की खेती से 12 लाख की कमाई कैसे करे ?
sugarcane in hindi | गन्ने की वैज्ञानिक खेती
मटर की खेती- एक से डेढ़ लाख तक का मुनाफा हासिल कैसे करे
गेहूं- 12 कुंटल/ बीघा निकालने की तरकीब आखिर कर मिल ही गई
सोयाबीन की खेती-सालाना 10 लाख कमाए
बाजरे की खेती | कम लगत में अधिक उत्पादन
मक्के की खेती | काम लगत से ज्यादा कमाए
Paddy crop in Hindi | धान की फसल को 8 कुंतल /बीघा कैसे निकले काम लगत में
आलू की बुवाई का सही समय क्या है
60 दिन में पकने वाली सरसों – खेती 4 कुंतल बीघा
गेहूं और सरसों में पहले पानी पर क्या डाले ज्यादा उत्पादन के लिए
अरहर की खेती pdf -एक बार बुवाई और 5 साल तक कमाई ही कमाई, इस तरीके से करें अरहर
बरसीम की खेती- बरसीम हरा चारा | 1000 से 1200 क्विंटल तक हरा चारा कैसे ले?
मेन्था की खेती- मेन्था रेट
चुकन्दर (Sugar Beet) की वैज्ञानिक खेती- chukandar ki kheti kaise ki jaati hai
जौ(Barley) की वैज्ञानिक खेती – जौ की खेती in english
सूरजमुखी की खेती pdf
मसूर (Lentil) की वैज्ञानिक खेती- masoor ki kheti mp
ग्वार की फसल कितने दिनों में तैयार हो जाती है?
तुड़ाई: आमतौर पर हरी फलियाँ 60-90 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं। यह किस्म विशेष रूप से रबी और खरीफ के बीच गर्मी के मौसम के लिए विकसित की जाती है। इसलिए रबी की फसल के तुरंत बाद इसकी बुआई कर देनी चाहिए। बुवाई का सर्वोत्तम समय 15 मार्च से 25 मार्च के बीच है।
एक बीघे में कितनी ग्वार होती है?
दरअसल एक बीघे में ग्वार का उत्पादन 3 से 4 क्विंटल प्रति बीघा के करीब होता है।
ग्वार में कौन सी खाद डालें?
ग्वार की फसल के लिए खेत की तैयारी- यदि संभव हो तो प्रति हेक्टेयर 20 से 25 कु० गोबर की खाद डालें। इससे अंकुरण में सुधार होगा और प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि होगी। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिए। इस प्रकार मिट्टी को कम से कम 20 से 25 सेमी की गहराई तक ढीला कर दिया जाता है।
ग्वार की अच्छी उपज के लिए क्या करें?
ग्वार की बुआई का अच्छा समय 1 से 15 जुलाई तक है। बुआई : एक ग्वार की फसल के लिए 12 से 15 किग्रा उन्नत किस्म के बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बोयें।
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए।
- उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए।
- समय-समय पर खरपतवार निकाल दें।
- खेत की गहरी जुताई मई माह में कर देनी चाहिए।
सबसे अच्छा ग्वार बीज क्या है?
ग्वार की खेती के लिए किसान ग्वार की उन्नत किस्मों एचजी 365, एचजी 563 और ग्वार की नई किस्म एचजी 2-20 की बुआई कर रहे हैं।
https://sonucsc.com/2023/01/06/%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%96%e0%a5%87%e0%a4%a4%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%ac-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%82/