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sugarcane in hindi | गन्ने की वैज्ञानिक खेती
- Botanical name- Saccharum officinarum

Family- Poaceae

क्षेत्रफल एवं विवरण -

भारत में शर्करा के मुख्य स्रोत के रूप में गन्ने sugarcane in hindi की खेती प्राचीन काल से होती आई है। भारत में गन्ने की खेती ऋग्वेद काल( 2500से 1400 ई० पूर्व) मैं की जाती है।

sugarcane in hindi-गन्ने की वैज्ञानिक खेती

जलवायु-

गन्ना उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है इसे उपोष्ण जलवायु में भी पैदा किया जाता है  अच्छी बढ़वार के लिए अधिक तापमान 26 से 32 डिग्री सेल्सियस आद्रता 87 % चमकीले धूप तथा बड़वार की लंबी अवधि आवश्यक है। तथा उच्च तापमान अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में गन्ने की अधिक उपज होती है।

भूमि एवं भूमि की तैयारी- 

गन्ना सभी प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है ।अच्छे जल निकास वाले दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम रहती है गन्ने को भारी दोमट तथा बोलो 2 मिनट में भी सफलतापूर्वक हुआ जा सकता है जिसका पीएच मान 6.1 से 7.5 पीएच मान वाली भूमि में उपयुक्त मानी जाती है।

गन्ने की खेत की तैयारी के लिए 3 से 4 जुलाई गैरों से करनी चाहिए। उसके उपरांत तीन से चार जताई कल्टीवेटर लगाकर पाटा चला देनी चाहिए। उसके उपरांत एक रूटर लगाकर पाटा चलाकर गन्ने की खेत की तैयारी कर लेते हम अगर हमें गोबर की खाद मिला ना हो तो आखरी जुताई के समय हम 250 से 300 कुंटल गोबर की खाद प्रति एकड़ मिलाते हैं।

गन्ने की उन्नत जातियां-

अगेती – 10,11 माह में तैयार 13% चीनी, 13-15%, रेशा, 75 टन प्रति हैक्टेयर पैदावार, काना रोग से मध्यम प्रतिरोधी ।

मध्य पछेती -11-12 माह, 12.50% चीनी, 15%, रेशा, 90 टन उपज प्रति है०. काना रोग से मध्यम प्रतिरोधी

उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के लिये अनुमोदित गन्ने की जातियाँ

SR.N 

क्षेत्र

अगेती

मध्यम पछेती

1

तराई

को० शा० 88230, 95255, 92254 को० जे० 64

को० शा० 767, 90269, 93278, को० पन्त 84212

2

पश्चिमी तथा मध्य उ० प्र०

को० शा० 8436, 95255, 88230, 87216, 96258, 90265, को०जे० 64, 83, को० से० 95436, 95432

को० शा० 8432, 88216, 90269, 91230, 91248, 92263, 93278, 94257, 95222, को० पन्त 84212, को० से० 92423, को० शा० 767, को० पन्त 90223

3

पूर्वी उत्तर प्रदेश

को० शा० 8436, 95255, को० से० 95432, 95436

को० शा० 8432, को० से० 96436, को० से० 92423,93232

4

जल भराव क्षेत्र (पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया, गोरखपुर, फैजावाद, बस्ती, बलिया तथा खीरी, पीलीभीत)

उत्तर प्रदेश में गन्ने के क्षेत्रफल का लगभग 16%  जल भराव से प्रभावित है। गन्ने के खेतों में जुलाई से अक्टूबर तक घुटनों तक पानी भर जाता है।

को० से० 96436 (सर्वोत्तम), यू०पी० 9529, यू०पी० 9530

 

गन्ने की बुवाई का समय-

गन्ने को बोते समय 26 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान रहा है अंकुरण के लिए अच्छा माना जाता है ।उत्तरी भारत में यहां तापमान अक्टूबर एवं फरवरी में रहता है इन दोनों महीने में गन्ना बोया जाता है।

शरद कालीन गन्ने की बुवाई

शरद कालीन गन्ना बोने का उपयुक्त समय 15 सितंबर से 15 अक्टूबर है ।इस समय गन्ना बोने पर गन्ने की दो पंक्तियों के बीच गेहूं आलू तोरिया मटर मसूर प्याज आदि फसलों को हो गया जाता है। अधिकतर किसान गन्ने की फसल में सरसों मटर मसूर व अन्य फसलों की बुवाई मिक्स Crooping रूप में करते हैं।

बसंत कालीन गन्ना-

फरवरी मार्च में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना गेहूं की फसल काटकर अप्रैल-मई तक होते हैं ।बसंत कालीन गन्ने के साथ मूंग उड़द की शपथ ली ले सकते हैं ।इसलिए इसे गन्ना फरवरी में 90 सेंटीमीटर की दूरी पर होते हैं ।

अवसादी गन्ना-

इस फसल की बुवाई जून-जुलाई में करते हैं। दक्षिणी भारत में इस फसल को लेते हैं। यहां फसल 18 से 24 माह में तैयार होती है।

बीज और बुवाई

बीज के लिए गन्ना स्वास्थ्य और रोग मुक्त खेत से लेना चाहिए । भिंडी की फसल का बीज प्रयोग ना करें गन्ने का ऊपरी भाग बीज के लिए प्रयोग में लाया जाए तो अंकुरण अच्छा होता है। क्योंकि ऊपरी भाग में आंखें नई सजीव रोग व कीट के प्रकोप से मुक्त होती है।

बीज दर(Seed rate)-

गन्ने को तीन आंखों वाले टुकड़े में काट लेना चाहिए। 35000 से 40000 तीन आंख वाले टुकड़ों को एक हेक्टेयर की बुवाई के लिए पर्याप्त रहते हैं जो लगभग 60 से 70 क्विंटल गन्ने से प्राप्त  होती है।

बीज उपचार(Seed treatment)-

गन्ने की बीज उपचार के लिए तथा उनके बीमारियों को नियंत्रण करने के लिए गन्ने के टुकड़ों को एगलोल 3% घोल में या एरीटान 6 % के घोल में 5 मिनट रुको कर उपचारित करते हैं एरीटान को 400 ग्राम मात्रा 1 हेक्टेयर के लिए प्राप्त होती है। गन्ने के टुकड़ों को 54 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म हवा से 8 घंटे तक उपलब्ध उपचारित करने से पेडी का बौनापन आदि नहीं होते है।

sugarcane in hindi-बुवाई की विधियां

समतल खेत में गन्ना  बोना

समतल खेतों में रिजर्व द्वारा बनाए गए फोटो में हम गन्ने की तीन आंख वाली टुकड़े को डालकर गन्ने की बुवाई करते हैं ।उत्तर प्रदेश में अधिकतर यहां विधि अपनाई जाती है इसमें रिजा का कोड 10 से 15 सेंटीमीटर गहर बनाए जाते हैं।

गन्ना बुवाई की और भी अनेक विधिया है ।जैसे नालियों में गन्ना बोना ,दोहरी पंक्ति विधि में गन्ना बोना, ट्रेंच विधि द्वारा गन्ना की बुवाई और रिंग मेथड भी अपनाई जाती है।

खाद एवं उर्वरक(Manure and Fertilizer)

गन्ने में अधिक NPK की आवश्यकता होती है। इसके लिए हमें 120 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन ,80 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। और इसमें लगभग गोबर की खाद का प्रयोग 250 से 300 quantal प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए।

मिट्टी चढ़ाना एवं बांधना-

अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए गन्ने को गिरने से बचाना चाहिए इसके लिए गन्ने को जड़ों पर जून के महीने में बरसात से पहले मिट्टी चला देनी चाहिए। गन्ने की दो कतारों के बीच से मिट्टी खोदकर लगभग 15 सेंटीमीटर हो जाता गन्ने के दोनों तरफ मिट्टी चढ़ देनी चाहिए गन्ने की बधाई अच्छी प्रकार सेकंड करनी चाहिए जिससे बरसातों में अधिक वर्षा या हवा के चलने से गन्ने ना गिरे इसके लिए हम बंधाई करते हैं।

सिंचाई(Irrigation)-

पश्चिम उत्तर प्रदेश के लिए 6 से 8 तक पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए 4-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। जिनमें से कम से कम 2 से 6 वर्ष के बाद करनी चाहिए शरद करण गन्ना को पाले से बचाव हेतु बीच-बीच में सिंचाई करते हैं।

निराई गुड़ाई-

गन्ने की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खरपतवार का नियंत्रण आवश्यक है गन्ने की बुवाई के 30 से 45 दिन बाद हमें निराई गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। जिसे हम अंधी गुड़ाई कहते हैं तथा बीच-बीच में कस ले या खुरपी की सहायता से हम इसमें निराई गुड़ाई करते रहते हैं। जिससे गन्ने की बटवारा अधिक हो और खरपतवार नियंत्रण होती रहे। गन्ने की चौड़ी पत्ती खत्म करने के लिए हम 2,4-D नामक रसायन का प्रयोग करते हैं। घाट स्कूल के खरपतवार को नष्ट करने के लिए सीमाजीन अथवा एट्राजीन इन 2 किलोग्राम सक्रिय तत्व को 1000 लीटर पानी में घोलकर बोलने के तुरंत बाद पूरे करनी चाहिए।

रोग नियंत्रण(Disease control)

लाल सड़न या काना रोग(Red rot of sugercane)

गन्ने की फसल का यह भयानक रोग है। इस रोग से ग्रसित पौधे की ऊपरी पत्तियां सूखने लगती है ।बाद में पूरा पौधा ही सूख जाता है रोगी गन्ने को पड़ने पर उसका अंदर का भाग लाल रंग की धारियों से भरा दिखाई देता है। रोगी गन्ने से अल्कोहल की गंध आती है।

इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाएं रोग रोधी पर जातियों का चयन करें तथा बीजों का उपचार करें।

कंडुवा (smut)

कंडुवा भी गन्ने का प्रमुख हानिकारक रोग है ।रोक का मुख्य लक्षण अगले में शपथ ली और नुकीली चाबुक नमक काले रंग की चमकीली संरचना का निकलना है।

पोक्का बोइंग- बीमारी भी गन्ने की बहुत ही हानिकारक बीमारी है। इसके लिए उचित फसल चक्र अपनाएं गन्ने को समय समय पर खाद पानी की आवश्यकता को पूर्ति रखना चाहिए।

कीट नियंत्रण(Insect Control)-

दीमक-इस कीट के प्रकोप से गन्ने की फसल को काफी हानि पहुंचती है। यहां पौधे के जमीन के अंदर के भाग खाकर हानि पहुंचाती है बुवाई से पूर्व 5 % अल्ट्रीन 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए।

पायरिल्ला -

यहां की एक गन्ने की फसल में अत्यधिक हानि पहुंचाती है। इस कीट से प्रभावित गन्ने की पत्तियां पीली पड़ जाती है। अंत में सूख जाती है इसकी रोकथाम के लिए 2 % फैलीडॉल चूर्ण अथवा 10 % कारबराल चूर्ण 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए।

जड़ तना अगोला वेधक कीट

यहां के एक गन्ने की जड़ तना एवं अगोला को अत्यधिक हानि पहुंचाती है। जिससे हमारी उपज पर पूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसके नियंत्रण के लिए Chlorenterpril 18.5 % का छिड़काव मृदा पर करनी चाहिए। उसके 24 घंटे के उपरांत खेतों में पानी लगाने देनी चाहिए।

कटाई-

गन्ने की कटाई उस समय करनी चाहिए जब उसके रस में चीनी की मात्रा सर्वाधिक हो।

उपज- 700 से 800 कुंतल

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