जौ की खेती
Botanical classification
Botanical name- Hordeum vulgare L.
family- Gramineae
chromosome number-2n = 14
महत्व एवं उपयोग (Importance and Utility)-
संचार के विभिन्न विभागों में जौ की खेती ( जौ की खेती in english )प्राचीन काल से की जा रही है। इसका प्रयोग प्राचीन काल से मनुष्य के भोजन और जानवरों के दाने के लिए किया जा रहा है। हमारे देश में जौ का प्रयोग रोटी बनाने के लिए शुद्ध रूप में तथा चने के साथ मिलाकर बेजर के रूप में अथवा गेहूं के साथ मिलाकर किया जाता है। लेकिन कभी-कभी इसको भूनकर या पीसकर सत्तू के रूप में भी प्रयोग करते हैं।
अवयव
प्रतिशत मात्रा
कार्बोहाइड्रेट
68.20
प्रोटीन
11.12
वसा
1.80
फॉस्फोरस
0.45
कैल्शियम
0.08
अन्य खनिज
0.75
रेसा
5.00
नमी
12.60
हमारे देश में अधिक मात्रा में जौ का प्रयोग जानवरों के चारे एवं दाने के लिए तथा मुर्गी पालन में अच्छे दाने के लिए किया जाता है।
क्षेत्रफल एवं वितरण (Area and Distribution)-
जौ उष्णकटिबंधीय पौधा है । परंतु इसकी खेती सफलतापूर्वक शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु में भी की जाती है। जौ की खेती विश्व के अधिकांश भागों में की जाती है। विस्तृत रूप में चीन, रूस, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, भारत, कनाडा, रुमानिय, टर्की, पोलैंड, मोरक्को, फ्रांस, डेनमार्क, ग्रेट ब्रिटेन, हंगरी, अर्जेंटीना एवं ऑस्ट्रेलिया आदी है। जौ का सबसे अधिक उत्पादन चीन में क्या जाता है।
जौ की खेती करने वाले देशों में विश्व में भारत का छठवां स्थान है। यहां जहां पर विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 3 . 5 प्रतिशत भाग उत्पन्न किया जाता है। भारत में जौ का कुल क्षेत्रफल सन 2,000 - 2001 के आंकड़ों के अनुसार 7. 34 लाख हेक्टेयर, कुल उपज 14 .12 लाख टन और औसत उपज 1923 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी।
भारतवर्ष में अधिकांश राज्य में जौ की खेती की जाती है। परंतु सबसे अधिक उत्तर प्रदेश और उसके बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा तथा बिहार आता है। उत्तर प्रदेश में भारत के कुल उत्पादन का 42% भाग पैदा किया जाता है।
जलवायु(Climate)-
जौ शीतोष्ण जलवायु की फसल है। लेकिन समशीतोष्ण जलवायु में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। जौ की खेती समुद्र तल से लेकर 4000 मीटर की ऊंचाई तक की जाती है । जौ की खेती के लिए ठंडी और नाम जलवायु उपयुक्त रहती है। इसलिए जौ उन सभी स्थानों पर जहां 4 माह तक पौधे की वृद्धि के लिए अनुकूल ठंडा मौसम पाया जाता है। जो की खेती के लिए उपयुक्त है।
जौ की फसल के लिए न्यूनतम तक रम 35 से 40 °F उच्चतम तापक्रम 72 -86°F और उपयुक्त तापक्रम 70 °F होता है।
भूमि (Soil)-
जौ के लिए अच्छी जलनिकासयुक्त मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। भारत में जौ की खेती अधिकतर रेतीली भूमि में की जाती है। जौ की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त होती है।
भूमि की तैयारी-
जौ की फसल में सर्वप्रथम मिट्टी पलट हल या हैरो की सहायता से 2-3 जुताईया तथा कल्टीवेटर की 2 जुताई अंत में रूटर चलाकर खेत में पाटा चला देनी चाहिए।
बीज की मात्रा एवं उपचार-
हल के पीछे कुंड में या सीडड्रिल से बुवाई करने पर 75 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर, छिटकवा विधि में 100 किलोग्राम, डीबलर विधि में 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज प्रयोग होता है।
बीज को सदैव कैप्टन या थायरम रसायन से 250 ग्राम 100 किलोग्राम बीज उपचार करके बोना चाहिए।
उन्नतशील जातियां-
देश के विभिन्न प्रांतों में अपनाई जाने वाली जौ की उन्नतशील जातियां निम्न प्रकार है-
क्षेत्र
सिंचित समय से बुआई
सिंचित पछेती बुआई
असिंचित (बरानी)
1. उ0प्र0 पश्चिमी
ज्योति, जागृति, मंजुला करण 19, करण 252 व 15, बी० एल० 88, DL 120, DL 165, RD 2668
ज्योति, मंजुला करण 15 नीलम, प्रीति, DL 88, DL 472, K 7570
विजया; आजाद, रतना RD 31. करण 18, अम्बर DL 157, DL, 3, K 141, हरितया
पूर्वी
ज्योति, जागृति; DL 36 करण 252 व 233
ज्योति, DL 36. DL 88 प्रीति जायति मंत्रुका
विजया, आजाद, रतना, लक्षण, करण 18 व 142 K-141 हरितया (K-560), पितांजली
बुन्देलखण्ड
ज्योति, करण 15, RS 6, DL 36, ज्योति: RS 6, प्रीति, जागृति, मंत्रुका आजाद, रतना, लक्षण, RS 6 के RD 57, करण 19, बी० एल० 88, प्रीति, जागृति
ज्योति, RS 6, प्रीति जायति मंत्रुका
169; DL 107; गीतांजली K 141, K 560, K 226
उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड का पहाड़ी क्षेत्र 1500 मी० तक
-
VLB-1
डोलमा, हिमानी, कैलाश, करण 18; अम्बा, आजाद, लषण
2. हरियाणा
ज्योति DL 127, DL 165,DL 171, बी०जी० 25 व 105, सी० 164, K252, K253
BG105; BG 108, DL 88, RD 31: सी० 138, रतना, बी० K 15, नीलम, K 7570
RD 31, DL 3, DL 157
3. राजस्थान
ज्योति
DL 88, K 15, मजुला, नीलम
रतना, DL 100, RS 6, RS 17,
उ० पश्चिमी
RD 57, RD 31, RS 6
DL 472
RD 137, RD 57, DL 3, DL 157, RD 31, आजाद, K 141
उ० पूर्वी
DL 120, DL 165, DL 171, RD 103 BG 25
-
-
4. मध्य प्रदेश
ज्योति, RS 6, RS 57, RD 31, DL 70, DL 171, DL 265
DL 88
आजाद, रतना,DL 100, DL 253, RS 6, RS 117 RD 2660
5. बिहार
ज्योति, करण 252, करण 253,
K 392, K 1155, DL 36, DL 88,ज्योति, जागृति, DL 437, केदार
आजाद, रतना, करण 141 करण 169, K 404; K 1166
बोने की विधियां-
गेहूं की तरह जौ भी छिटकवां, हल के पीछे, सीडड्रिल द्वारा या डिबलर द्वारा बोया जाता है।
1)छिटकवां विधि - इस विधि में बीज की अधिक मात्रा खेतों में डाली जाती है। साथी कुछ बीज ऊपर और नीचे चली जाती है। इस विधि में 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है।
2)हल्के पीछे कुंड में बुवाई- इस विधि में हल से कुंड निकाला जाता है। और हल्के पीछे कुंड में हाथ से हल में नाई बांधकर बीज डाला जाता है । इसमें बीज समान गहराई पर और पंक्ति में पड़ता है। 75 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर इस विधि में प्रयोग करते हैं।
3)सीडड्रिल द्वारा बुवाई - ट्रैक्टर या बलों द्वारा चलने वाले सीडड्रिल से बुवाई ं करना सदैव अच्छा रहता है।इसमें पंक्तियों की दूरी व पंक्तियों में पौधे से पौधे की दूरी सदैव समान रहती है तथा बुवाई भी शीघ्र होती है।75 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर इस विधि में प्रयोग करते है।
3)डिबलर विधि - इस विधि में श्रम अधिक बीज कम लगता है। बीज की मात्रा कम होने पर क्षेत्र में बुवाई के लिए उपयुक्त है। 20 -25 किलोग्राम बीज प्रयोग करते है।
बोने की गहराई-
जौ की बुवाई 5-6 सेंटीमीटर की गहराई पर की जाती है। इसकी गहराई पर बुवाई करने पर भ्रूणचोल मृदा से बाहर नहीं आ पाती है। वह अपनी सतह में नमी की कमी के कारण अंकुरण अच्छा नहीं होता है।
बोने का समय-
जौ की फसल की बुवाई सिंचित क्षेत्रों में नवंबर के द्वितीय सप्ताह में करनी चाहिए। देर में बुवाई करने पर उपज में लगातार कमी होती रहती है । असिंचित क्षेत्र में 15 से 30 अक्टूबर तक बुवाई की जाती है। पछेती बुवाई 15 से 20 दिसंबर तक करते हैं।
खाद एवं उर्वरक-
जो की फसल में 200 से 300 कुंटल गोबर की खाद बुवाई के 1 महीने पहले खेतों में मिला देनी चाहिए।
परिस्थितियाँ
पोषक तत्त्वों की मात्रा (किग्रा० / हे०)
नत्रजन
फॉस्फोरस
पोटाश
1. सिंचित समय से बुआई
50-60
30-40
20
2. सिंचित पछेती बुआई
40-50
20-30
20
3. असिंचित (बरानी)
40
20
20
4. लवणीय भूमियाँ
80
30
30
5. माल्टिंग जी
30
20
20
फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय खेतों में मिला देनी चाहिए ।तथा बची नाइट्रोजन की मात्रा पहली और दूसरी सिंचाई में बराबर भागों में बांट कर छिड़कना चाहिए।
सिंचाई एवं जल निकास-
जौ की फसल में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए दो से तीन सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पहले सिंचाई बोने के 30 दिन बाद, दूसरी सिंचाई बोने के 60 से 65 दिन बाद तथा तीसरी सिंचाई बाली में दूध पढ़ते समय 80 से 85 दिन बाद की जाती है।
निराई- गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण-
खरपतवार की वृद्धि अगर अधिक दिखाई पड़े तो एक निराई कर सकते हैं।
जौ की फसल में रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए 2,4 -D की 0.50 किलोग्राम सक्रिय मात्रा 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर तथा डोसानैक्स 1.0 किलोग्राम बुवाई के 1 माह बाद 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर प्रयोग करना चाहिए।
पादप सुरक्षा (Plant Protection)-
रोग नियंत्रण-
जौ की बीमारियां निम्न प्रकार है-
1)गेरुई या रतुआ (Rust)-
जो की फसल में दो प्रकार की गेरुई का प्रभाव होता है। काली गेरुई (Black rust)तथा भूरी गेरुई (Brown rust)काली गेरुई में पत्तियों का रंग काले -काले धब्बे पड़ने लगते हैं। तथा भूरी गेरुई में पत्तियों का रंग भूरा या ब्राउन कलर की हो जाती है अंत में पत्तियां सूख जाती है। और फसलों पर अधिक प्रभाव डालती है।
इसकी रोकथाम के लिए यूपी 115 ,यूपी 262 ,यूपी 368, यूपी 1109, यूपी 2003, यूपी 21 21, एचडी 2009, एचबी 208 रोग रोधी किस्म को बोना चाहिए।
फसल को समय से होना चाहिए।
जिनेब का छिड़काव काली और भूरी गेरुई रोकथाम के लिए उपयुक्त होता है।
डायथेन M- 45 नामक दवाई का छिड़काव 0.2% के हिसाब से पानी में घोलकर करना चाहिए। इसके लिए 1000 लीटर पानी में 2 किलोग्राम दवाई डालकर खेतों में छिड़काव करनी चाहिए।
2)कंडुवा रोग (Smut disease)-
यहा बीज जनित फफूंद रोग है। इसमें जब पौधे में बाली आती है तो उनमें दानों के स्थान पर काला चूर्ण बन जाता है। और इसके पश्चात पूरी बाली समाप्त हो जाती है।
इसकी रोकथाम के लिए बीजों को 0. 25% बैयटान या एग्रोसन जी०एन० 2 पॉइंट 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से मिलानी चाहिए। फसल चक्र अपनाने चाहिए।
3) मोल्या रोग-
इस रोग के लक्षण बुवाई के 3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं। रोग से प्रभावित पौधे बोने और पीले रंग के दिखाई देते हैं। और ऊंचाई में 30 सेंटीमीटर से अधिक कभी नहीं बढ़ते हैं। पौधे में कल्ले कम फूटते हैं।
की रोकथाम के लिए नोमेटोसाइट्स का प्रयोग करना चाहिए। 2 से 3 वर्ष तक फसल चक्र अपनाने चाहिए।
कीट नियंत्रण-
1)दीमक-
यह फसलों की जड़ों को खाती है। और सुरंग बनाकर भूमि में रहती है।
इसकी रोकथाम के लिए हैप्टाक्लोर का 5 % धूल या क्लोरोडेन की 5% धूल 20 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोलने से पहले कुंडो में डालनी चाहिए।
2)कट वोम्र्स(Cut worms)-
इसके लारवा भूमि की सहायता से पौधे के तने को काटता है। यह कभी-कभी बड़ा ही भयंकर आक्रमण करता है। जिससे फसल को काफी नुकसान पहुंच जाता है।
इसकी रोकथाम के लिए हैप्टाक्लोर का 5 % धूल या क्लोरोडेन की 5% धूल 20 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोलने से पहले कुंडो में डालनी चाहिए।
3)माहू(Aphids)-
यहां कीट जौ की फसलों में लेट बुवाई करने पर अधिक लगता है । यहां कीट कोमल पत्ते की सतह से रस चूसने के अलावा एक चिपचिपा पदार्थ भी छोड़ते हैं । जिस पर काली फफूंद फैल जाती है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल पर 1 लीटर मेटासिस्टाक्स 25 ई० सी० को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
कटाई एवं मंड़ाई -
जौ की फसल जल्दी ही पक जाती है। नवंबर के प्रथम में बोई गई फसल मार्च के अंतिम सप्ताह में पक कर तैयार हो जाती है । पकने के बाद फसल की कटाई तुरंत करनी चाहिए । कटाई दराती या मशीनों द्वारा कम्बाइन द्वारा की जाती है।
कटाई हंसिया से या बड़े फार्म पर कंबाइन हार्वेस्टर से करते हैं। दानों में 20 से 23 % नमी रहने पर कटाई करते हैं। 4 से 5 दिन खलीयान में सुखाकर, मंड़ाई बैलों से व हम आमतौर पावर थ्रेसर से करते हैं।
उपज-
जौ की अच्छी देखरेख करने पर उन्नतशील जातियों से 30 से 35 कुंटल दाना व 30 से 35 कुंटल भुसा प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है।
भंडारण-
दाने में 10 से 12% नमी होने पर भंडारण किया जाता है
जौ की खेती in english
अन्य फैसले-
तम्बाकू की वैज्ञानिक खेती- tobacco farming
मूंगफली की खेती pdf | मूंगफली की वैज्ञानिक खेती
कपास की खेती pdf | कपास की खेती से 12 लाख की कमाई कैसे करे ?
sugarcane in hindi | गन्ने की वैज्ञानिक खेती
मटर की खेती- एक से डेढ़ लाख तक का मुनाफा हासिल कैसे करे
गेहूं- 12 कुंटल/ बीघा निकालने की तरकीब आखिर कर मिल ही गई
सोयाबीन की खेती-सालाना 10 लाख कमाए
बाजरे की खेती | कम लगत में अधिक उत्पादन
मक्के की खेती | काम लगत से ज्यादा कमाए
Paddy crop in Hindi | धान की फसल को 8 कुंतल /बीघा कैसे निकले काम लगत में
आलू की बुवाई का सही समय क्या है
60 दिन में पकने वाली सरसों – खेती 4 कुंतल बीघा
गेहूं और सरसों में पहले पानी पर क्या डाले ज्यादा उत्पादन के लिए
जौ के लाभ -
कैसे जौ वजन घटाने को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है?
जौ वजन घटाने के लिए सबसे फायदेमंद अनाज पाया गया है। यह घुलनशील फाइबर का एक समृद्ध स्रोत है और आपको लंबे समय तक भरा हुआ महसूस करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, यह कैलोरी में कम है और आपको दैनिक आधार पर कम कैलोरी खाने में मदद करेगा।
इसमें बीटा-ग्लूकन नामक एक यौगिक भी होता है जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे चीनी युक्त खाद्य पदार्थों के लिए भूख और लालसा कम हो जाती है।
त्वचा के लिए जौ के क्या फायदे हैं?
जौ एक अनाज का दाना है जिसका उपयोग सदियों से भोजन के रूप में और बीयर के उत्पादन में किया जाता रहा है। इसका उपयोग पशुओं के चारे और कागज के निर्माण में भी किया जाता है।
जौ को पीसकर आटा बनाया जा सकता है या बीयर बनाने के लिए पीसा जा सकता है, जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं। जौ के पौधे में उच्च स्तर के एंटीऑक्सिडेंट, प्रोटीन और आहार फाइबर पाए गए हैं। जौ का उपयोग त्वचा देखभाल उत्पादों जैसे लोशन, क्रीम, साबुन, चेहरे के मास्क और स्क्रब में एक घटक के रूप में भी किया जा सकता है। इन लाभों के अलावा, जौ में बीटा-ग्लूकन भी होता है जो त्वचा को मजबूत बनाने के लिए कोलेजन उत्पादन को उत्तेजित करता पाया गया है।
जौ के पोषण संबंधी लाभ क्या हैं?
जौ के पोषण लाभों को इस तथ्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है कि यह फाइबर में उच्च है और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम है।
जौ एक अनाज की फसल है जिसकी खेती 8,000 से अधिक वर्षों से की जा रही है। यह अपने उच्च पोषण मूल्य के कारण दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण अनाज फसलों में से एक है। जौ का उपयोग अक्सर ब्रेड, अनाज और बीयर जैसे उत्पादों में एक घटक के रूप में किया जाता है। इसमें फाइबर, विटामिन बी और ई, सेलेनियम, मैंगनीज और थायमिन जैसे कई पोषक तत्व होते हैं।
जौ के पोषण लाभों को इस तथ्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है कि यह फाइबर में उच्च है और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम है।
दैनिक जीवन में जौ का उपयोग कैसे किया जा सकता है?
जौ एक प्रकार का अनाज है जो मुख्य रूप से पशु आहार और बीयर के उत्पादन में उपयोग किया जाता है। हालाँकि, यह वर्षों से कई अन्य तरीकों से भी उपयोग किया जाता रहा है। दैनिक जीवन में जौ का उपयोग करने के कुछ रोचक तरीके यहां दिए गए हैं:
- रोटी, पास्ता, या अन्य पके हुए सामान बनाने के लिए जौ का आटा बनाया जा सकता है।
- इसे पानी के साथ मिलाया जा सकता है और माल्ट सिरप में बदल दिया जाता है जिसे बाद में बीयर बनाने के लिए यीस्ट के साथ मिलाया जाता है।
- जौ के भूसे को काटा जा सकता है और बागवानी में जैविक सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- इसे मशरूम की खेती के लिए एक सब्सट्रेट के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि यह कवक के बढ़ने के लिए सही स्थिति प्रदान करता है।
भोजन में जौ का उपयोग कैसे किया जा सकता है?
जौ एक अनाज का दाना है जो कई देशों में उगाया जाता है लेकिन इसका उपयोग खाद्य उद्योग में ज्यादा नहीं किया गया है।
जौ एक अनाज का दाना है जो कई देशों में उगाया जाता है लेकिन इसका उपयोग खाद्य उद्योग में ज्यादा नहीं किया गया है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि जौ पारंपरिक रूप से पशु चारा और बीयर से जुड़ा था। लेकिन, अब जौ को एक घटक या गेहूं के आटे के विकल्प के रूप में पाया जा सकता है जो आहार फाइबर का अच्छा स्रोत प्रदान करता है। जौ को भी अंकुरित करके कच्चा खाया जा सकता है या गाजर या पालक जैसी अन्य सब्जियों की तरह पकाया जा सकता है।
https://sonucsc.com/2022/12/26/%e0%a4%9c%e0%a5%8c-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%96%e0%a5%87%e0%a4%a4%e0%a5%80-in-english/