
मूंग (Mung Bean) की वैज्ञानिक खेती
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Botanical classification
Botanical name-Vigna radiata
family-Fabaceae
chromosome number- 2n = 22 या 24
महत्व एवं उपयोग(Importance and Utility)-
मूंग भारत की बहु प्रचलित एवं लोकप्रिय दालों में से एक है। मूंग की खेती pdf फाइल में कैसे ले सकते हे सभी हेडिंग के साथ ये हेडिंग आप को से रोगो और कीट की जानकारी पाने में मदद करेगी और फसल में ज्यादा उत्पादन ले सकते है मूंग की नमकीन तथा मिष्ठान, पापड़ और मंगोड़ी भी बनाई जाती है। इसके अतिरिक्त मूंग की हरी फलीया सब्जी के रूप में खाई जाती है। इसकी फसल हरी खाद तथा पशुओं के हरे चारे के लिए भी प्रयोग की जाती है।
मूंग की जड़ों की ग्रंथियों में एक सूक्ष्म जीवाणु राइजोबियम पाया जाता है। यह जीवाणु वायुमंडल से स्वतंत्र नाइट्रोजन मृदा में स्थापन योगिक नाइट्रोजन के रूप में करता है।
मूंग के दानों में पोषण मान वसा, कार्बोहाइड्रेट्स , प्रोटीन कैल्शियम , फास्फोरस, लोहा तथा कैलोरीमान पाई जाती है।
उत्पत्ति एवं इतिहास(Origin and History)-
मुंग का विकास बिगना रेडियेटा उपजाति सबलोबेटा से हुआ है । यहां उपजाति भारत में जंगली रूप में उगती हुई पाई जाती है। वेवीलोव के अनुसार मूंग का जन्म स्थान भारत या मध्य एशिया है।
वितरण एवं क्षेत्रफल(Area and Distribution)-
मूंग की खेती विश्व के बहुत ही कम देशों में की जाती है। भारत में अति निकट दक्षिण पूर्वी एशिया के कुछ देशों में भी मूंग की फसल आदि क्षेत्रफल पर उगाई जाती है।
भारत में इसकी खेती आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान व गुजरात में अन्य प्रदेशों की अपेक्षा बड़े पैमाने पर की जाती है। उत्तर प्रदेश में मूंग की खेती मिश्रित फसल और अकेली दोनों रूप में की जाती है।
जलवायु(Climate)-
मूंग की फसल वर्ष के विभिन्न महीनों में विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाई जाती है । कुछ स्थानों पर मूंग की फसल 2000 मीटर की ऊंचाई तक उगाई जाती है। 100 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले स्थान पर मूंग की फसल सफलतापूर्वक उगाई जाती है। पौधे पर फलिया आते समय और फलियों के वक्त समय शुष्क मौसम एवं उचित तापक्रम लाभदायक होता है।
भूमि(Land)-
मूंग की फसल काली मिट्टी, दोमट, मटियार तथा एल्यूवियल आदि सभी प्रकार की मृदा में सफलतापूर्वक उगाई जाती है। भारी भूमियों की अपेक्षा हल्की मृदा अधिक उत्तम होती है।
भूमि की तैयारी(Field Preparation)-
मूंग की फसल के लिए पहले जुताई मिट्टी पलट हल से करने के उपरांत हैरों से करने के उपरांत ,उसके बाद दो से तीन जुताई कल्टीवेटर या रूटर की सहायता से करने पर खेतो में पटा चला कर समतल कर दिया लिया जाता है।
मूंग की उन्नतशील जातियां(Mung Bean Improved varieties)-
पूसा वैशाखी, हाइब्रिड- 45, टाइप -44, के 851, पी० एस० 16 ,शीला, पंत मूंग 1, पन्त मूंग 3, मोहिनी, एम एल -5 , 2007 , पूसा विशाल, पंत मूंग 5, तथा पंत मूंग 6।
बीज(Seed)-
बीज सादा प्रमाणित व फफूंदी नाशक दवाइयों जैसे एग्रोसन जी० एन० या कैप्टन या जीराम या थीराम से उपचारित करके बोना चाहिए इन रसायनों की 200 से 250 ग्राम मात्रा एक कुंटल बीज को उपचारित करने के काम आती है।
बीज को बोने से पूर्व राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए।
बीज दर(Seed rate)-
मिश्रित फसल में बीज दर 8 - 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर वह अकेली फसल में बीज दर 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग की जाती है।
पंक्ति की दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर तक रखी जाती है। ग्रीष्म ऋतु में बीज की दर 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखते हैं। और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर रखते हैं।
बोने का समय व विधि (Time of showing and method)-
उत्तरी भारत में फसल बसंत व खरीफ में उगाते हैं। कर्नाटक व आंध्र प्रदेश में फसल रवि में बोई जाती है। अप्रैल में गेहूं के खेत खाली होते ही पलेवा करके मूंग की बुवाई कर देते हैं। मूंग को 15 फरवरी से 15 अप्रैल तक भी बोया जाता है।
खाद एवं उर्वरक(Manure and Fertilizer)-
मूंग की फसल के लिए 200 से 300 कुंटल गोबर की खाद खेत की जूताई के समय अच्छी प्रकार से मिला देनी चाहिए यहां के लिए 15 दिन पहले करनी चाहिए।
मूंग की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए 20 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 से 60 किलोग्राम फास्फोरस व पोटाश 30 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
सिंचाई एवं जल निकास(Irrigation and Water Management)-
ग्रीष्मकालीन फसल को 4 से 6 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
ग्रीष्मकालीन फसल में सिंचाई का बहुत अधिक महत्व होता है। वर्षाकालीन फसल में अगर सूखा पड़ जाए तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।
निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण(Weed Management)-
दाने वाली फसल की निराई गुड़ाई बुवाई के 25 से 30 दिन बाद करनी चाहिए दूसरे निराई बुवाई के 45 दिन बाद आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।
रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूक्लोरेलिन (बेसालिन) 1 किलोग्राम 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई पूर्व खेत में छिड़ककर भूमि में 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर अच्छी प्रकार से मिला देना चाहिए।
मिश्रित खेती(Mix Crooping)-
मुंह की मिश्रित खेती के लिए मक्का, ज्वार, कपास व गन्ना आदि फसलों के साथ की जाती है।
पादप सुरक्षा-
रोग एवं रोग नियंत्रण(Disease and Disease Control)-
पीला मोजेक-
इस रोग के कारण नई पत्तियां पीली हो जाती है । पत्तियों की शिराओ का किनारा पीला पड़ जाता है। और तत्पश्चात पूरी पति ही पीली पड़ जाती है। यहां रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है।
सफेद मक्खी का नियंत्रण 0.1% थायोडान और 0.1% मेटासिस्टॉक्स के छिड़काव द्वारा नियंत्रण करते हैं। छिड़काव फसल बोने के 20 से 25 दिन बाद तीन चार बार छिड़काव करते हैं।
पर्ण चित्ती-
पत्तियों पर वृत्ताकार व्यास के धब्बे से प्रकट होते हैं। कभी-कभी रोग ग्रस्त भागों के साथ मिलने से बड़ा अनियमित आकार का धब्बा बन जाता है । धब्बों का रंग बैगनी, लाल तथा भुरा होता है। इस के प्रकोप से फलियों का रंग काला पड़ जाता है।
इसकी रोकथाम के लिए 0.2% जिनेब का घोल 7 से 10 दिन के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए।
चारकोल विगलन-
यहां रोग मुख्य रूप से पौधे की जड़ों तथा तनो का विगलन है ।
इसके रोकथाम के लिए बोने से पूर्व बीज को क्वीण्टोजीन उपचारित कर लेना चाहिए। इसके अलावा मोजेक वह रस्ट रोग भी मूंग की फसल में लगते हैं गेरुई के लिए 0. 2 प्रतिशत जीनेब का घोल का छिड़काव करें।
कीट एवं कीट नियंत्रण(Insect and Insect Control)-
मूंग की फसल में कीटों का प्रकोप अधिक होता है। मूंग की फसल में बिहार हेयरी कैटरपिलर, सेमिलूपर तंबाकू का कैटरपिलर, और एफीड आदि इन सभी किट पतंग का प्रकोप होता है, जो मूंग की फसल में अधिक नुकसान पहुंचाता है।
इसकी रोकथाम के लिए 0. 15% थायोडीन का छिड़काव करना लाभप्रद है। बी एस सी डस्ट 10% के 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकरने पर भी यहां कीट पतंगे का प्रकोप फसलों पर नहीं होता है।
कटाई एवं मंड़ाई (Harvesting and Threshing)-
मूंग की फलियां गुच्छो में लगती है। पकने पर फलिया का रंग हरे से पीला काला होने लगता है । फलिया पकने के बाद ज्यादा दिन खेत में छोड़ने पर वह चटक जाती है। अतः इनकी तुड़ाई शीघ्र करनी चाहिए। 6 से 7 सप्ताह बाद फलिया पक जाती है। दो से तीन बार में पूरी फसल से फलिया को तोड़ लिया जाता है।
मूंग की ऐसी जातियां जिनके फलिया एक साथ पकती है। फसल को एक साथ काट कर मड़ाई करके दाने अलग कर लेते हैं। दाने बैल चला कर या डंडों के सहारे अलग कर लिए जाते हैं। जिन जातियों की खड़ी फसल से फलिया तोड़ी जाती है उन्हें फलिया तोड़कर काफी फसल के चारे के काम में ली जा सकती है।
उपज(Yield)-
मूंग की अच्छी देखरेख करने पर दाने की औसत उपज 10 से 12 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है। ग्रीष्मकालीन फसल से 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दाने की उपज प्राप्त हो जाती है।
मूंग की खेती pdf
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मूंग की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है?
अब मूग मासिक फसल 52 दिनों में तैयार हो जाएगी। दो-तीन बार जुताई या हीरो चलाकर भूमि को समतल कर लें। दीमक से फसल को बचाने के लिए एल्ड्रिन 5% चूर्ण प्रति एकड़ आखिरी गुड़ाई से पहले और गुड़ाई के बाद मिट्टी में मिला दें।
मूंग की उपज कितनी होती है?
उन्नत तरीके से मूंग की खेती करने पर वर्षा ऋतु की फसल से 10 क्विंटल/हेक्टेयर। और गर्मी की फसल से 12-15 क्विंटल/हे. औसत उपज मिल सकती है। मिश्रित फसल में 3-5 क्विंटल/हे. उपज प्राप्त की जा सकती है।
1 एकड़ में कितने मूंग के बीज बोए जाते हैं?
इस किस्म में 6-7 क्विंटल प्रति एकड़ उपज मिलती है, बीज केवल 6 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालते है। मूंग कल्याणी किस्म की बुवाई से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
मूंग की दाल सबसे अच्छी कहाँ उगती है?
मूंग की फलियाँ उपजाऊ, रेतीली दोमट मिट्टी में अच्छी आंतरिक जल निकासी और 6.3 और 7.2 के बीच पीएच के साथ सबसे अच्छी होती हैं। इष्टतम विकास के लिए मूंग की फलियों को थोड़ी अम्लीय मिट्टी की आवश्यकता होती है। यदि बारी-बारी से उगाया जाता है, तो चूना सबसे अधिक अम्ल-संवेदनशील फसल का पीएच प्राप्त करता है। भारी मिट्टी में जड़ वृद्धि प्रतिबंधित हो सकती है।
मूंग की अच्छी उपज के लिए क्या करें?
खरपतवार नियंत्रण- फसल बोने के एक या दो दिन बाद 500 लीटर पानी में घोल बनाकर 3.30 लीटर व्यावसायिक रूप से उपलब्ध पेंडीमिथालिन (स्टॉम्प) प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। जब फसल 25-30 दिन की हो जाए तब खुरपी की सहायता से एक निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए
मूंग में कौन सी इल्ली की दवा डालनी चाहिए?
डाइमेघोएट को 600 मीटर पानी में 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से घोलकर तुरंत छिड़काव करें।
मूंग में प्रथम छिड़काव कब करें?
फसल को रोग से बचाने के लिए किसान बुवाई से पूर्व बीज को इमिडाक्लोप्रिड से उपचारित करें। साथ ही बुवाई के लगभग 15 दिन बाद कीटनाशक का छिड़काव करें।
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