वानस्पतिक नाम (Botanical name)-Arachis hypogaea
कुल(Family)-Fabaceae
परिचय (Introduction)
मूंगफली दलहनी कुल का सदस्य है। इस पौधे ( मूंगफली की खेती pdf ) की जड़ों में ग्रंथियां होती है। जिसमें अनेक जीवाणु पाए जाते हैं,जो कि वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर भूमि में योगीकरण करते हैं। मूंगफली का उपयोग तेल वनस्पति घी के निर्माण में तथा खाने के लिए बड़ी मात्रा में प्रयोग किया जाता है। मूंगफली में 45% तेल पाया जाता है ।मूंगफली को भूनकर उसके दानों को चबाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है ।मूंगफली की खली में 7.3% नाइट्रोजन 1.5% फास्फोरस 1.3% पोटाश पाया जाता है ।
क्षेत्रफल और उत्पादन केंद्र-
ब्राजील देश मूंगफली का जन्म स्थान माना जाता है। हमारे देश में मूंगफली की खेती लंबे समय तक की जा रही है। भारत में मूंगफली 6.6 मिलियन हेक्टेयर में उगाई जाती है। तथा 6.4 मिलियन टन उत्पादन होता है। हमारे देश में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु ,कर्नाटक ,गुजरात ,महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश आदि राज्य में मूंगफली की खेती की जाती है।
जलवायु (Climate)-
मूंगफली एक उष्णकटिबंधीय पौधा है । यहां गर्म व शुष्क जलवायु का पौधा है । फसल की सर्वोत्तम वृद्धि के लिए 21°-27°C तापमान अच्छा माना जाता है । मूंगफली की खेती में वार्षिक वर्षा का स्तर 50 सेंटीमीटर से लेकर 100 सेंटीमीटर तक अच्छा माना जाता है। अधिक वर्षा मूंगफली के लिए हानिकारक होता है।
भूमि व भूमि की तैयारी-
मूंगफली के लिए सर्वोत्तम भूमि बलुई दोमट माना जाता है। भारत में मूंगफली की खेती अनेक प्रकार की भूमियों में किया जाता है ।
भूमि की तैयारी के लिए खेतों में 10 से 15 सेंटीमीटर गहरी जुताई करनी चाहिए। उसके लिए सर्वप्रथम हैरों से तीन से चार जुताई तथा कल्टीवेटर से 2 जुताई अंत में रूटर लगाकर पाटा से खेत को समतल कर लिया जाता है।
मूंगफली की उन्नत किस्में-
मूंगफली की उन्नत किस्में निम्न प्रकार हैं-
टाइप 28, मूंगफली नंबर -13, मूंगफली -145, एम०एच०-4 , (मूंगफली हरियाणा 4) प्रकाश ,टाइप -64, चंद्रा ,ज्योति, चित्रा, कौशल (जी 201 )अम्बर -3
MH1, MH 2 , PB 1,M 37, M197 , M335 एवं SG 84 ।
मूंगफली के गुण (Quality in Groundnut)-
दाने का प्रतिशत, परीक्षण भार ,दाने का आकार ,फलियो व दानों का रंग ,तेल का प्रतिशत तथा तेल में स्वतंत्र वसा अम्लों की मात्रा।
बीज का उपचार (Seed Treatment)-
फलियों के छिलकों को हल्के दवा उसे तोड़ना चाहिए जिससे कि दाने ना टूटने पाए बुवाई से पहले फलियों को 24 घंटे तक पानी में भिगोना चाहिए जिससे कि फलिया प्राप्त मात्रा में नमी का शोषण कर सकें फलियों शैतानों को बुवाई से 6 से 7 दिन पहले ही निकलना चाहिए
बुवाई से पहले बीज का उपचार सेरेसान से करना बहुत ही लाभदायक है। 250 ग्राम सेरेसान थायराम 100 किलोग्राम बीज को उपचारित करने से प्राप्त माना जाता है।
बीज की मात्रा (Seed rate)-
बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर सीधी बढ़ने वाली व गुच्छेदार किस्मों में 90 से 100 किलोग्राम व फैलने वाली किस्मों में 60 से 70 किलोग्राम दाने का प्रयोग किया जाता है।
बोने का समय व विधि-
उत्तरी भारत में बुवाई का समय 15 जून से 15 जुलाई तक करते हैं ।अगेती बोई गई फसल में बढ़वार अधिक होती है।
भारी मृदा में बुवाई 4-5 सेंटीमीटर गहराई तथा हल्की भूमियों में बाईपास से 7 सेंटीमीटर गहराई पर करते हैं।
बोने की विधि -हल के पीछे बुवाई ,डिबलर विधि तथा सीड प्लांटर विधि से करते हैं
पौधों का अंतरण-
गुच्छेदार किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर और फैलने वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
सिंचाई(Irrigation)-
मूंगफली की फसल में समय-समय पर 15 से 20 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए। सिंचाई करने से फसलों की पैदावार अधिक होती है। तथा मूंगफली में दाना बनते समय और फूल आते समय सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक-
मूंगफली दलहन फसल होने के कारण नाइट्रोजन की कमी आवश्यकता होती है मूंगफली में 20 से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 किलोग्राम फास्फोरस 40 किलोग्राम पोटाश देनी चाहिए।
200 से 300 कुंटल गोबर की खाद मूंगफली लगाने के 1 महीने पहले खेतों में मिलाकर जुताई कर देनी चाहिए।
निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण-
मूंगफली के खेतों में निराई गुड़ाई की अधिक आवश्यकता पड़ती है ।इसलिए दो से तीन बार निराई गुड़ाई खुरपी की सहायता से करनी चाहिए जिससे खरपतवार आदित्य ना होगे और उपज में भारी वृद्धि हो।
रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए बेसालिन के 1 किलो सक्रिय अवयव को 1000 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई से पूर्व खेतों में छिड़ककर हैरो से मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिए।
पादप सुरक्षा (Plant Protection)-
हानिकारक कीट एवं उनकी रोकथाम-
सफेद सुंडी (White Grub)-
यहां मूंगफली का सबसे हानिकारक कीट है। सफेद ग्रब भूमि के अंदर जुलाई से सितंबर तक क्रियाशील रहते हैं। तथा यहां कीट पर प्रारंभिक अवस्था में पौधे की जड़ों को खाकर हानि पहुंचाती है । इसके फल फलस्वरूप पौधे सूख जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से थिमेट 10 % या सेवीडाल 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुवाई करने से पूर्व मिट्टी में मिला देनी चाहिए।
मूंगफली का एफिड-यहां केट मुलायम पत्तियों को खाना शुरू कर देता है। यहां के अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है। जिससे विषाणु रोग फैलने में सहायक होता है।
इसकी रोकथाम के लिए मेटासिस्टाक्स या रोगोर 30 E.C. कि 1 लीटर 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
बिहार के बालदार सुंडी-
स्केट का प्रकोप मूंगफली की फसल में अधिक प्रकोप होता है इसकी सूंडिया पत्ते को खा जाती है। तथा कीट के अधिक संख्या होने पर पूर्ण फसल को भी हानि पहुंचा सकती है।
इसकी रोकथाम के लिए 1.5 लीटर साइपरमैथरीन 4% क्लोरोपायरीफास 40% का छिड़काव 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
बीमारियां एवं उनकी रोकथाम-
टिक्का रोग (Tikka Disease)-
टिक्का रोग मूंगफली का भयानक रोग है ।जो एक फफूंदी द्वारा फैलता है इस रोग का प्रकोप होने पर छोटे-छोटे गहरे कथ्य रंग के गोल धब्बे उत्पन्न हो जाते हैं। जब रोग का प्रकोप बढ़ जाता है तो पत्ते गिर जाती है।
रोगों की रोकथाम के लिए जिंक मैग्नीज कार्बोनेट (डायथेन M-45) 2.5 किलो ग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर दो से तीन छिड़काव 10 दिन के अंतर पर करना चाहिए तथा बीजों को उपचारित करके बोना चाहिए।
रोजेट(Rosette)-
यहां एक विषाणु द्वारा उत्पन्न होने वाला रोग है यहां विषाणु एक एफिड द्वारा फैलाया जाता है । इस रोग के प्रभाव से पौधे बोने रह जाते हैं तथा उनका रूप रोजेट जैसा हो जाता है। पौधे पीले पड़ जाते हैं मोजेक जैसा रूप दिखाई देता है
इस रोग की रोकथाम के लिए कीटनाशक (एफिड के लिए) दवाओं जैसे मेटासिसटॉक्स 25 E.C.1 लीटर मात्रा के 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें ।रोग रोधी किस्मों को बनना चाहिए।
स्क्लैरोटीएम सड़न-
यहां रोग मृदा में पाई जाने वाली से फफूंदी फैलता है ।पौधों की जड़ों में तथा मृदा तल के नजदीक सफेद धागे के आकार की रचना पाई जाती है तथा पत्तियां पीली पड़ जाती है। बाद में भूरे रंग की होकर गिर जाती है।
रोगों की रोकथाम के लिए जिंक मैग्नीज कार्बोनेट (डायथेन M-45) 2.5 किलो ग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर दो से तीन छिड़काव 10 दिन के अंतर पर करना चाहिए तथा बीजों को उपचारित करके बोना चाहिए।
गेरूई(Rust)-
इस रोग के लक्षण पत्तियों पर लाल रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं ।यह धब्बे पत्ति की ऊपरी सतह की अपेक्षा निचली सतह पर अधिक पाए जाते हैं जिससे कारण पत्तियां सूख जाती है।
इस रोग की रोकथाम के लिए फसल पर 0.05% बाविस्टीन का छिड़काव करना चाहिए।ंं
कटाई एवं मंडाई-
मूंगफली के कटाई के लिए हंसीया या दराती से काटकर तीन से चार दिन सुखाकर हम मंड़ाई कर लेते हैं। आजकल अधिकतर मशीनों का प्रयोग हो रहा है इसलिए इसके लिए हार्वेस्टर का प्रयोग किया जाता है। जिससे मूंगफली अलग निकल कर आ जाती है।
उपज(Yield)-
मुंबई की फसल की अच्छी देखरेख करने पर 30 से 40 कुंटल सिंचित क्षेत्र में उपज पाई जाती है। तथा शुष्क व असिंचित क्षेत्र में 15 से 20 कुंटल तक उपज पाई जाती है।
मूंगफली की खेती pdf
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